Friday, September 23, 2011

Short Cut !

कैसा ये 'काल' है !

जिस 'माल'* ने बनाया हमें 'मालामाल' है,        *पशु-धन 
किस दर्जा आज देखो तो वो पाएमाल है.

आँखे ! कि तेरी झील सी इक नेनीताल है.
गहरी है, कितनी नीली है, कितनी विशाल है.

'रथ' पर, 'ट्रेन' में कोई, कोई हवा में है* ,    *प्रचार के लिए !
है पात-पात कोई,  कोई  डाल-डाल है.

'P C'  भी अब चपेट में वाइरस की, ख़ैर  हो,
'राजा' ये कह रहा है कि सब 'सादे नाल' है. 

'रक्खा' विदेश में है,सुरक्षित हरएक तरह,
'नंबर' जो उसका गुप्त है, वो सादे नाल है. 

वो तो 'अमर' है, साथ में लोगा वड्डे-वड्डे* !   *big B
'चिरकुट' कहे कोई उसे, कोई दलाल है.

'वो' आसमानों पर है ज़मीं की  तलाश में,
हम तो ज़मीन खोद* के होते 'निहाल' है.      *खनन 

--mansoor ali hashmi

7 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर एवं सार्थक रचना।

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मनुष्‍य के लिए खतरा।
रूमानी जज्‍बों का सागर है प्रतिभा की दुनिया।

विष्णु बैरागी said...

सदैव की तरह शानदार और धारदार।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर अभिव्यक्ति!

उम्मतें said...

@ आख़िरी शेर ,

जो आखिर में खोदना थी वो पहले खोद ली उन्हें आखिरत की किस कदर फ़िक्र है :)

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आपका चिर परिचित अंदाज़ रंग जमा रहा है … बधाई और आभार !





आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

Madhu Tripathi said...

chacha ji aapka jvab nahi
madhu tripathiMM
http://www.kavyachitra.blogspot.com