Friday, August 12, 2011

Reality


हर जगह मेरा जुनूँ  रुसवा हुआ !

# विष्णु बैरागी ने जब फतवे पे इक 'फ़तवा'* दिया,   *एकोऽहम्अज्ञान का आतंक
   चौंके पंडित और मुल्ला भी अचंभित रह गया.

# हर गली हर मोड़ पर अन्ना पढ़ा, अन्ना सुना,
   भ्रष्ट चेहरों पर मगर आई नज़र मक्कारियां. 

# "खेल ये क्रिकेट हमारा है", बड़ी अच्छी तरह,
   घर बुला कर हमको गौरो ने तो बस समझा दिया.

# दासता से मुक्त गांधी ने अगर करवाया तो,
   मुश्किलों के वक़्त में जे.पी. कभी अन्ना मिला.

# नाम अपने देश का  जग में बहुत चमका दिया,
   कैग [CAG]  कहता है ज़रूरत से अधिक खर्चा किया.


# सबसे ज़्यादा है अगर दौलत तो 'भगवानो' के पास !
   'नास्तिक' तू गुमरही में अब तलक भटका हुआ !!

# भीड़ से बचने को 'आरक्षण' ज़रूरी है अगर,
   क्या हुआ ! मैंने जो अपना आज 'रक्षण' कर लिया? 

# I.A.S. और  I.P.S. , 'प्रदेश' से बढ़ कर नही,
   जो 'गुजरता' जा रहा था क़ैद* क्यूँ उसको किया ?        *Record

-Mansoor ali Hashmi   

5 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

mansoor bhaai kmaal ka likhaa hai bhaai .akhtar khan akela kota rajsthan

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत खूबसूरत

Udan Tashtari said...

बहुत खूब!!

विष्णु बैरागी said...

आपने तो मुझे मेरी औकात और हैसियत से करोडों गुना इज्‍जत बख्‍श दी हाशमी साहब! शुक्रिया। आपके लिखे पर क्‍या कहूँ? हर बार की तरह लाजवाब और तीखी चुभनवाला। आपका लिखा इतना सीमित है - यह हमारा अभाग्‍य ही है।

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

bahut badiya, sir! :-)