Wednesday, August 3, 2011

NON-SENSE !


बे-बात  की बात!


'कल' तो 'माज़ी' हो गया है, आज की तू बात कर,            [ माज़ी को अरबी में 'मादी' भी पढ़ते है] 
'येद्दु' से मुक्ति मिली, 'कस्साब' पर अब घात् कर.


करना क्यूँ 'अनशन' पड़े ? रफ़्तार टूटे देश की,
जन का हित जिसमे हो एसा 'लोकपाली' पास कर.

'PUT' को 'पट' पढ़ना नही और 'BUT' को बुत न बोलना,
 है  poor इंग्लिश तो प्यारे, हिंदी ही में Talk कर.

हारने* के वास्ते अब यूं चुना अँगरेज़ को!                 *[क्रिकेट में]
अब चुका सकते 'लगां' हम नोट ख़ुद ही छाप कर!!

'ग़र्क' होने से बचा, 'Obama'  उसका देश भी,
एक कर्ज़ा फिर मिला, इक और फिर 'Default'  कर!

इक 'शकुन्तल' रच रहे है, बनके 'कालीदास'*  फिर,       *[आज के राजनेता]
जिसपे बैठे है उसी डाली को ख़ुद ही काट कर.

पहले 'क़ासिद' को बिठाते सर पे थे आशिक मियाँ!
काम [com] अब करवा रहे है देखो उसको डांट [dot] कर. 
--mansoor ali hashmi 

9 comments:

विष्णु बैरागी said...

यह हमारे समय का अभाग्‍य है हाशमी साहब कि आपकी ऐसी रचनाऍं जन-जन तक नहीं पहुँच पा रहीं। आपकी ऐसी रचनाऍं पढनेवाले को पहले तो गुदगुदाती हैं और अगले ही पल चिढाती/खिझाती हैं। यही तो 'व्‍यंग्‍य' है। मैं आपको नमन करता हूँ। ईश्‍वर आपको लम्‍बी उम्र और अच्‍छी सेहत दे।

Anonymous said...

@ ISMAIL SAFDARI :

Dear Mansoor Uncle,
Assalam o alaikum and Shahar e Ramazan Mubarak to you and All!
Nicely assembled thoughts, well said.
Dua mein yaad

-Ismail and full Safdari Family RAK

Udan Tashtari said...

ग़र्क' होने से बचा, 'Obama' उसका देश भी,
एक कर्ज़ा फिर मिला, इक और फिर 'Default' कर!


-क्या गज़ब बात कह गये...वाह!

Anonymous said...

Ajit Wadnerkar said:

क्याब्बात है हाश्मी साब...
आप के व्यंग्य की धार पैनी होती जा रही है।
मुझे लगता है अकबर इलाहाबादी की तरह ही
आप भी उर्दू में गंभीर व्यंग्य शायरी की ओर बढ़ रहे हैं।
शुभकामनाएं

अजित
http://shabdavali.blogspot.com/

उम्मतें said...

कल नहीं माज़ी हुआ,
वो हो गया है भूत जी.
येदि से मुक्ति कहां,
जब गौड़ उसके दूत जी.

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

aap bilkul sateek likhte hain,... shukriya! :-)

Mansoor ali Hashmi said...

@ अली ...

बहुत ख़ूब, अली साहब, नहले पे दहला जड़ दिया आपने..

'डिमेंशिया' भी काम आया है बला को टालने! 'dementia'
'येद्दु' को वारिस मिला है अब 'खनन'* को पालने.

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाशमी साहब! आप का जवाब नहीं और अली भाई का भी।

लक्खन दिखा रहा है
पालने में पूत
कुछ कम नहीं भूत से
उसका ये दूत

prerna argal said...

बहुत खूब /ब्यंग करती हुई शानदार रचना /बधाई आपको /