Tuesday, June 21, 2011

Pandora of Knowledge !!!


ज्ञान का सोपान 


अपना-अपना ध्यान रख लीजे,
मिल रहा मुफ्त 'ज्ञान' रख लीजे.

सुगबुगाहट 'अपातकाल' सी फिर, 
बंद अपनी ज़ुबान  रख लीजे.

चाँद दिखलाते 'वो' हथेली पर,
'दूर-द्रष्टा' है 'मान' रख लीजे.

इतनी नजदीकियां नहीं अच्छी,
फासला दरमियान रख लीजे.

'फैसला' जिस जगह पे बिकता हो,
नाम उसका 'दुकान' रख लीजे.

जाने कब तोड़ना पड़े अनशन,
साथ में खान-पान रख लीजे.

योग तो बाद में भी कर लेंगे,
पहले लिख कर बयान रख लीजे. 

'सूद' से गर परहेज़  करते है,
 नाम उसका 'लगान' रख लीजे.

अस्ल से बढ़ के सूद लाएगा,
क़र्ज़ दीजे, पठान रख लीजे.

गांधीवादी ! तो बनिए बन्दर से,
बंद मुंह, आँखे, कान रख लीजे.

यादे माज़ी में गुम रहो बेशक,
साथ कुछ वर्तमान रख लीजे.

है अंदेशा बहुत भटकने का,
साथ गीता-कुरान रख लीजे.

बात ललुआ से कर रहे है आप,
साथ में पीकदान रख लीजे.

बन ही जायेगा 'लोकपाली बिल'  
कुछ यकीं कुछ गुमान रख लीजे.

'गल' न कर छूट जाएगी 'गड्डी',
झट से अपना 'समान' रख लीजे.

है हर इक दायरे से ये बाहर,
मुफ्त मिलता है 'दान' रख लीजे.

देश हित में सफ़र ! मुबारक हो,
साथ में खानदान रख लीजे.

वोट पैसो से अब नहीं मिलता,
साथ में पहलवान रख लीजे.

२०-२० का ये ज़माना है,
घर के नीचे दुकान रख लीजे.

mansoor ali hashmi 

6 comments:

उम्मतें said...

बेहतरीन ! आपका जबाब नहीं !

दिनेशराय द्विवेदी said...

मंसूर भाई! वाकई जवाब नहीं है। बेहतरीन लिख रहे हैं आप आजकल।

ZEAL said...

जबरदस्त व्यंग लिखा है, अनेक मुद्दों पर। ज्ञान के इस भण्डार से अभिभूत हूँ। अभिवादन स्वीकार करें।

BrijmohanShrivastava said...

तात्कालिक परिस्थितियों पर शानदार शेर। बन्द अपनी जुबान

"मकिन है कल जुबानो कलम पर हों बंदिशें
आंखों को गुफ्तगू का सलीका सिखाइये "
नजदीकियां नहीं अच्छी

"koi हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये अजीब किस्म का शहर है जरा फासले से रहा करो "
वोट पैसो से अब नहीं मिलता यह भी बहुत बढिया

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत कुछ है इसमें और जो विशेष है वो है आपका अंदाजे बयाँ

Udan Tashtari said...

बहुत गज़ब...वाह!!!