Monday, June 6, 2011

क्यूँ चारो तरफ फैला है भरम?


क्यूँ  चारो तरफ फैला है भरम?

'अन्ना' पे करम, 'बाबा' पे सितम ,
'अम्मा' इस तरह करना न ज़ुलम!

'पैसा' है सनम, 'योगा' से शरम,
'मन'* है तुझको कैसा ये भरम ?           [*PM]

'भगवे' से हुआ ख़तरा पैदा,
'शलवार'* ने रखली 'उनकी' शरम.        *[बाबा रामदेव]

रक्षा करना थी देश की जब,
'आँचल' को बना डाला परचम.

स्वागत करके लाये थे जिसे,
छोड़ा उसको हरि  के द्वारम.

'अनशन' करने से रोको नही,
'सेवा' करना ही जिनका 'धरम'.
-- mansoor ali hashmi 

11 comments:

SANDEEP PANWAR said...

कितने सुन्दर शब्द लिखे है, आपने,

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाह! आप का जवाब नहीं।

Udan Tashtari said...

'भगवे से हुआ ख़तरा पैदा,
'शलवार' ने रखली 'उनकी' शरम.

:)

Sunil Kumar said...

मंसूर अली साहेब आपने तो कमाल की गजल कही दाद तो कुबूल करें और आदाब भी...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

Ye bhee khub kahi aapne.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

अपनों पे करम, ओरों पे सितम
कुछ तो कर ले शर्म, कुछ तो कर ले शर्म।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत सुंदर।

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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्‍टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्‍यों?

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत बढिया।

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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्‍टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्‍यों?

Anonymous said...

vah mansur bhai... bahut badi baat kah gaye ho..

ZEAL said...

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मंसूर अली जी ,

आपके पास नीर-क्षीर विभेदक बुद्धि है। आपको सरकार की कारस्तानी स्पष्ट दिख रही है। ये अम्मा किसी की नहीं । किसी को प्रेम नहीं करती । किसी के कष्ट से इन्हें सरोकार नहीं । बेटा भूखा है और अम्मा रोज़ डिनर करके चैन से सो रहीं हैं। धिक्कार है ऐसी सरकार पर , जिसे जनता के दुःख से सरोकार नहीं। सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए , चुनाव जीतने के लिए झूठे वादे करती है और बाद में सब भुला देती है। हम आम इंसान निराश होने के सिवा कुछ नहीं कर सकते।

इस उम्दा , भावपूर्ण रचना के लिए आभार एवं बधाई।

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Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इस शमा को जलाए रखें।

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हॉट मॉडल केली ब्रुक...
यहाँ खुदा है, वहाँ खुदा है...