Sunday, April 10, 2011

एक अण्णा हज़ार बीमार


एक अण्णा  हज़ार बीमार   

सौ है बीमार एक अनार है आज,
सरे फेहरिस्त भ्रष्टाचार है आज.

छोड़ गुलशन निकल पड़ा आख़िर,  
गुल को खारों पे इख्तियार है आज.

मरता, करता न क्यां! दहाढ़ उठा!
हौसला कितना बेशुमार है आज.

हक़ परस्ती की बात करता है !
कोई 'मंसूर' सू -ए- दार है आज?

दरिया बिफरा ज़मीं में कम्पन है,
क्यों फ़िज़ा इतनी बेक़रार है आज.

गिरती क़द्रें है; बढ़ती महंगाई,
मुल्क में कैसा इन्तिशार है आज !

दंगा 'सट्टे' पे, जाँ 'सुपारी' एवज़ !
फिर छपा एक इश्तेहार है आज.

जिस्म बीमार; रूह अफ्सुर्दः
इक मसीहा का इंतज़ार है आज. 

'अक्लमंदों' का अब कहाँ फुक्दान*     *[कमी]
एक धूँदो मिले हज़ार है आज. 

-mansoor ali hashmi

7 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

त्रस्त लोगों को एक रास्ता तो दिखा.

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर!

वीना श्रीवास्तव said...

सही कहा है...एक ढूंढो हजार मिलते हैं ...वैसे अक्सर ढूंढने की भी जरूरत नहीं पड़ती
बहुत खूब....

Udan Tashtari said...

ekdum sateek,

डॉ० डंडा लखनवी said...

सौ है बीमार एक अनार है आज,
सरे फेहरिस्त भ्रष्टाचार है आज.
क्या बात कही है-आपने। काबिले तारीफ!
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अन्ना ने अभी तक जो जीत हासिल की है वह अपने चरित्रिक बल पर जीती है। चरित्र मानवीय-मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता से सवंरता है। चरित्रवान के लिए आत्म-निरीक्षण और अवगुणों से छुटकारा पहली शर्त है। संयम और त्याग की आँच पर ख़ुद को तपाना पड़ता है। हरामख़ोरी से बचना होता है। चरित्र बाहरी दिखावा नहीं अभ्यांतरिक शुद्धता है।
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मनुष्य बनने पर जोर कहाँ दिया जा रहा है? भारत में राजनैतिक सत्ता के गुलगुले जाति-धर्म के गुड़ से बनते रहे हैं। यदि गुड़ खराब होगा तो उसका असर उससे बने हर पकवान पर पड़ेगा। ऐसी दशा में गुड़ को शोधित किए बिना अच्छे परिणाम की कल्पना करना व्यर्थ है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

उम्मतें said...

मुश्किल ये है कि ये मुल्क हमेशा से एक 'अकेले चमत्कार' पे भरोसा करता आया है जबकि सुदीर्घ , साफ़ सुथरे और टिकाऊ काम के लिए बेहतर टीमवर्क की ज़रूरत होती है , इधर अन्ना की अपनी कोई सुगठित टीम भी नहीं है ! ...और ये जो भीड़ आपने देखी , उसमें से कितने अपने गिरेहबान में झांक कर देखते होंगे ?

अन्ना निजी तौर पर भले इंसान हैं पर उनके साथ ...?


बहरहाल हमेशा की तरह आपकी बेहतरीन पेशकश !

विष्णु बैरागी said...

बहुत सुन्‍दर। इसमें मेरी पसन्‍द का शेर यह है -

दंगा 'सट्टे' पे, जाँ 'सुपारी' एवज़ !
फिर छपा एक इश्तेहार है आज.