Sunday, January 9, 2011

हम लोग

हम लोग 




'द्रोण' जैसे 'गुरु' है तो यह तो होना है,
'अंगूठे' आज भी अपने कटा रहे हम लोग.

विदेशी लूटेगा कैसे 'सुनहरी चिड़िया' अब,
उन्ही के 'खातो' में 'लक्ष्मी' छुपा रहे हम लोग.


प्याज़ ही में ये दम था रुला सका हमको,
वगरना, बेटी, बहू को रुला रहे हम लोग.

धमाकों में भी तो, 'आनंद' 'असीम' है यारों, 
'उड़ाके' ख़ाक दिवाली मना रहे हम लोग.

नए ज़माने में, पीछे क्यों हम ही रह जाते,
स्वयं को लूट के देखो कमा रहे हम लोग.

अब इन्किलाब कि बाते हमें पसंद नही,
'स्वतंत्रता' ही को 'बंदी' बना रहे हम लोग.
Note: {Picture have been used for educational and non profit activies. If any copyright is violated, kindly inform and we will promptly remove the picture.}
-मंसूर अली हाश्मी 

7 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाह! क्या बात है?
आप का भी जवाब नहीं।

S.M.Masoom said...

धमाकों में भी तो, 'आनंद' 'असीम' है यारों,
'उड़ाके' ख़ाक दिवाली मन रहे हम लोग.

बहुत खूब

S.M.Masoom said...

संवेदना दिखाने को संवेदनहीन होते लोग..कुंवर जी

विष्णु बैरागी said...

आप लाजवाब हैं, यह कहने की जरूरत कभी नहीं रही। आपको सलाम। सलाम। बार-बार सलाम।

अजित वडनेरकर said...

सचमुच इन्क़लाब की अब ज़रूरत नहीं


लाजवाब हैं आप...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

प्याज़ ही में ये दम था रुला सका हमको...

बेहद असरदार पंक्तियाँ है सब.

उम्मतें said...

बेहद मानीखेज़ ! शानदार ! बेहतरीन तंज़ !