Friday, October 29, 2010

किस से 'गिला' करे !

किस से 'गिला'  करे !

उसका 'गीला', 'नी' लगे, 'गंदा' उन्हें !
'अंधी' 'रुत' है, दोस्तों अब क्या करे?
कैसी आज़ादी उन्हें दरकार है,
अपने ही जो देश को रुसवा करे !!

-मंसूर अली हाश्मी 
  


Thursday, October 28, 2010

एक रूबाई


 
जिस तरह माह-ओ-साल बीत गए,
यह ज़माना भी बीत जाएगा,
'हाशमी' वक़्त का ख्याल न कर,
एक दिन तू भी मुस्कुराएगा.


-मंसूर अली हाशमी
http://aatm-manthan.com

Wednesday, October 20, 2010

हो..... गया !


हो..... गया !

'ख़तम खेल', सोना हज़म हो गया,
रजत, तांबा जो था भसम हो गया.

पढ़ा ख़ूब 'कलमा दि'लाने पे जीत,
"विलन", सौत* का फिर बलम हो गया.  *[सत्ता]

लगी दांव पर आबरूए वतन,
रवय्या तभी तो नरम हो गया.

चला जिसका भी बस लगा डाला कश,
 'हज़ारेक' करौड़ी चिलम हो गया.

है मशहूर मेहमाँ नावाज़ी में हम,
बियर की जगह, व्हिस्की-रम हो गया.

सितारों से रौशन रही रात-दिन,
ये दिल्ली पे कैसा करम हो गया.

कमाई में शामिल 'विपक्षी' रहे,
'करोड़ों' का ठेका ! क्या कम हो गया? 

निकल आया टॉयलेट से पेपर का रोल*,  
यह वी.आई.पी. 'हगना' सितम हो गया. 

[*एक रोल ४१०० में खरीदा गया?]
-- mansoorali hashmi

Friday, October 1, 2010

अब यह करना है..........

अब यह करना है............
["अयोध्या पर फ़ैसला आने बाद...३०.०९.२०१०]

पढ़ चुके इतिहास अब भूगोल* भी जाचेंगे,
'इक' को कैसे 'तीन' करे, 'इन्साफ' से नापेंगे.

साठ साल तक लड़े है, अब दम थोड़ा ले-ले,
"रहनुमा" से अब तो अपने दूर ही भागेंगे.

धर्म, माल, कुर्सी या शौहरत किसकी चाहत है?
किस-किस की क्या निय्यत थी यह ख़ुद ही आकेंगे.

चाक गरीबां है अपना और हाल भी है बेहाल,
फटे में अब दूजो के यारो हम न झाकेंगे.

तौड़-फौड़, तकरार किया, अब चैन से रहने दो,
निकट हुए मंजिल के अब तो ख़ाक न छानेगे.

*भूगोल= geoagraphy 
mansoorali hashmi