Friday, September 17, 2010

ठहर जा ! सोच ले, अंजाम इसका क्या होगा?


ठहर जा ! सोच ले, अंजाम इसका क्या होगा?


ग्यान इसका मेरे दोस्त तुझको कब होगा. 
जो तुझसे ज़िन्दा रहे क्या वो तेरा रब होगा?

सन्देश वक़्त से पहले ही तूने आम किया,
फसाद होगा तो वो तेरे ही सबब होगा.


जो फैसला तेरे हक में हुआ तो ठीक मगर,
तेरा अमल तो तेरी  सोच के मुजब होगा.  

तू शक की नींव पे तअमीर कर भी लेगा अगर,
जवाब इसका भी तुझसे कभी  तलब होगा. 



हरएक शय से ज़्यादा वतन अज़ीज़ अगर, 
जो क़र्ज़ जान पे तेरे अदा वो कब होगा. 

-- mansoorali हाश्मी


10 comments:

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन ग़ज़ल मंसूर भाई...हर शेर लाजवाब...दाद कबूल करें...

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाकई बेहतरीन ग़ज़ल। इस का हर शेर कई लोगों को ऐसा लगेगा जैसे कह रहा हो -हट दूर हट, इस गाड़ी में ब्रेक नहीं है।

बलबीर सिंह (आमिर) said...

जो क़र्ज़ जान पे तेरे अदा वो कब होगा
सोचो
सोचो

Udan Tashtari said...

बहुत खूब सर जी.

उम्मतें said...

इशारों में ही सही बात गहरी कह डाली है आपने !
सारे के सारे सवाल पसंद आये !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बेहतरीन गज़ल।
हरएक शय से ज़्यादा वतन अज़ीज़ अगर,
जो क़र्ज़ जान पे तेरे अदा वो कब होगा.
..ठहर जा, सोच ले..आज सभी को इसकी जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि बिना सोचे समझे हम नाचने लगें..सपेरे की बीन पर, सर्प बन!

निर्मला कपिला said...

तू शक की नींव पे तामीर कर भी लेगा अगर,
जवाब इसका भी तुझसे कभी तलब होगा.

हरएक शय से ज़्यादा वतन अज़ीज़ अगर,
जो क़र्ज़ जान पे तेरे अदा वो कब होगा.
लाजवाब गज़ल । बधाई।

Anonymous said...

सुभाल्लाह .......हाश्मी साहब.......बहुत सूफियाना अंदाज़ है ..............आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा ..............मेरी नज़र में कुछ हिंदी की मात्रात्मक गलतियों पर गयी .....उम्मीद है आप आगे इसका ख्याल रखेंगे|

कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|

बाल भवन जबलपुर said...

ज़नाब वाक़ई गहरी बात कह रहें हैं

Parul kanani said...

daad kabool karen...amazing1