Monday, August 30, 2010

अब........ / NOW..

अब........

'पर-दर्शन' को एब समझते थे पहले,
'प्रदर्शन' ही रोज़ का अब मामूल हुआ.

'तलवारे' तो  पहुँच गयी है म्यूजियम* में, [*अंग्रेजो की]
अब धर्मो का रक्षक याँ त्रिशूल हुआ.
 
धरम, दया की यारी अब तो टूट रही,
हिंसा से वह लड़ने में मशगूल हुआ.

रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल  हुआ. 

--mansoorali hashmi

7 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

धरम, दया की यारी अब तो टूट रही,
हिंसा से वह लड़ने में मशगूल हुआ.

रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल हुआ.

बहुत सही कहा.

उम्मतें said...

हाशमी साहब ,
आपके ख्यालात की धार बड़ी तगड़ी है !
एन उसी जगह पर वार जहां नासूर हैं !
जितनी भी तारीफ करूं कम है !

नीरज गोस्वामी said...

तल्ख़ सच्चाइयाँ पिरोयीं हैं आपने अपनी ग़ज़ल में...दाद कबूल करें...
नीरज

कविता रावत said...

पर-दर्शन' को एब समझते थे पहले,
'प्रदर्शन' ही रोज़ का अब मामूल हुआ.
....aisa hi jagah dekhne ko mil raha hai...
..bahut khoob!

Udan Tashtari said...

रिश्वत से अब कम ही उलझन होती है,
ली, दे दी! जब सबब कोई माकूल हुआ.

-क्या बात है..सच सच बयानी!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की सोच को प्रणाम है!
बहुत कम लोग इतना खरा लिखते हैं।

अजय कुमार said...

यथार्थ को बयां करती रचना ,बधाई ।