Saturday, April 24, 2010

आडम्बर

अजित वडनेरकर जी,
 आज[२४-०४-१०/shabdon ka safar]  फिर आपने प्रेरित  किया है , आडम्बर के लिए, विडम्बना के साथ खेलना पड़ रहा है:-
__________
I [मैं]  P ह L ए 
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आ ! डम्बर-डम्बर खेले,
वो मारेगा तू झेले , 


जो हारेगा वो पहले,
ज़्यादा मिलते है ढेले*      [*पैसे]


देखे  है ऐसे मेले,
बूढ़े भी जिसमे खेले!


आते है छैल-छबीले,
बाला करती है बेले ,     


मैदाँ वाले तो  नहले,
परदे के पीछे दहले.


जब बिक न पाए केले*    [*केरल के]
वो बढ़ा ले गए ठेले.


"मो"हलत उनको जो "दी" है,
उठ तू भी हिस्सा लेले.  


-mansoor ali hashmi 
http://aatm-manthan.com 

10 comments:

kunwarji's said...

jabardast hai ji.....

kunwar ji,

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

वाह वाह!!
सही कहा चचा आपने !!

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज तो छायावाद का असर कुछ अधिक है।

Anonymous said...

murtaza vakil (ezziconcepts@gmail.com)

mansoor bh shukriya aapki kavita pad kar maza aa gaya.
"achhchhe (good) hai kitne thoren hai(writer)
chaaloo hai dhagle pagle "
- SHK MURTAZA VAKIL........

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

अली जी सुंदर रचना है ये व, वास्तव में ही यह तो मेरे कार्टून की प्रतिक्रिया के रूप में एकदम सटीक रूप से कंपलीमेंटरी भी.

Udan Tashtari said...

सही रचना// बेहतरीन!

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब।

daanish said...

रचना ....
अच्छी है !
सच कहूं , तो ये शेर पढ़ कर
तब्सिरे के लिए आना ही पडा ...
मैदाँ वाले तो नहले,
परदे के पीछे दहले.

वाह !!

आदेश कुमार पंकज said...

बहुत सुंदर
मातृ दिवस के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और मेरी ओर से देश की सभी माताओं को सादर प्रणाम |

Himanshu Mohan said...

"मो"हलत उनको जो "दी" है

वाह! क्या बाँधा है जनाब! मज़ा आ गया।