Wednesday, March 17, 2010

गो-डाउन [going down]

गो-डाउन [going down]  
[अजित वडनेरकरजी की आज{१७-०३-१०} की पोस्ट  गोदाम, संसद या डिपो में समानता से प्रेरित होकर]

''माल'' हमने ''चुन'' के जब  पहुंचा दिया गोदाम में.
शुक्रिया का ख़त मिला; ''अच्छी मिली 'गौ' दान में.



पंच साला ड्यूटी देके लौटे, साहब हाथ में,
''दो'' के लगभग  के वज़न की बैग थी सामान में.

कोई भंडारी बना तो कोई कोठारी बना,
वैसे तो ताला मिला है, उनकी सब दूकान में.

कितनी विस्तारित हुई 'गोदी' है अब हुक्काम की
शहर पूरा 'गोद  में लेना' सुना एलान में.

है वही नक्कार खाना और तूती की सदा,
आ रही है देखिये क्या खुश नवां इलहान में.*

*अब संसद में भी औरतो की दिलकश आवाज़े अधिक ताकत से गूंजने और सुनाई देने की संभावनाएं बढ़ रही है.

-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com




3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा कहा है।

Amitraghat said...

बहुत बढ़िया लिखा आपने जनाब........."
amitraghat.blogspot.com

अजित वडनेरकर said...

हमेशा की तरह चाक चौबंद है शब्दों की दुकान:)