Monday, November 30, 2009

लिब्राहन आयोग / Liberhan Commission

लिब्राहन आयोग 


एक 'रपट'  फिर लीक हो गयी,
हार किसी की जीत हो गयी.


देर से आई, ख़ैर न लायी,
कैसे भी कम्प्लीट हो गयी.


तोड़-फोड़ तो एक ही दिन की,
'सत्रह साली'  ईंट*  हो गयी.


संसद पर जो भी गुज़री हो,
'अमर-वालिया'  meet  हो गयी.


हो न सका 'कल्याण' जो खुद का,
मंदिर से फिर  प्रीत हो गयी.


बड़े राम से , निकले नेता,
बिगड़ी बाज़ी ठीक हो गयी.

*ईंट= निर्माण के लिए बनायी गयी.

-मंसूर अली हाशमी

4 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर ! साथ में यह भी जोडूंगा कि जनता बेवकूफ है ! आठ करोड़ में आठ सुन्दर मस्जिदे बन जाती !

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

मोहतरम मंसूर अली हाशमी साहब
आदाब
दिल नशीँ है आत्म मंथन आपका
है सबक़ आमोज़ चिंतन आपका
अहमद अली बर्क़ी आज़मी

Arshia Ali said...

गहरा व्यंग्य किया है आपने। बधाई।
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भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर जी!