Sunday, July 5, 2009

EMPTY WOOD

खाली वुड


I DON'T NEED TO SHOW MY LEG TO WIN NOTICES -Katrina kaif [T.O.I]

बाला* कद्रो के कदरदान जब तलक मौजूद है,
घुटनों या पाओं तलक हरगिज़ न जाना चाहिए.

CENSOR की कैंचिया हो जाये 'बूथी' इससे कब्ल,
बिक्नियों की बिक्रियों को रोक देना चाहिए.

Gay-परस्ती को बढावा देने वाले है यहीं,
निर्बलों को भी कभी नोबल दिलाना चाहिए.

Laughter show सी कहानी अब सफल होती यहाँ,
लेखको को काशी-मथुरा भेज देना चाहिए.

राज-नीति में अदाकारों की अब भरमार है,
शीश महलो से निकल जूते चलाना चाहिए.

आर्ट को फिल्मों में ढूंढे ? कोई मजबूरी नही,
SHORT से भी शोर्ट में अब तो छुपाना चाहिए.

*ऊपरी

8 comments:

विशाल कुमार मिश्र said...

मंसूर अली पादे गली गली

दिनेशराय द्विवेदी said...

ख्वाहिशें अच्छी हैं।

श्रद्धा जैन said...

kya baat hai bahut kaskar vayang kiya hai aapne

मुकेश कुमार तिवारी said...

ज़नाब मंसूर साहब,

आदाब,

कमाल का व्यंग्य है बिल्कुल करारा, जिन पटाखों का जिक्र है उनसा ही।

आपके जज्बे पारखी और पैनी नज़र को सलाम ।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

daanish said...

Laughter show सी कहानी अब सफल होती यहाँ,
लेखको को काशी-मथुरा भेज देना चाहिए.

waah janaab !!
aise tevar....bilkul steek baat..
aur wo bhi aasaan lehje meiN...
mubarakbaad .

---MUFLIS---

Vinay said...

बहुत ही उम्दा ख़्यालात

अजित वडनेरकर said...

मंसूर साहब, आपका व्यंग्य बोध कमाल का है।
मज़ा आया।

सबसे ऊपर की टिप्पणी मुझे अर्थहीन लगी। उसे हटा क्यों नहीं देते हैं ...

Mansoor ali Hashmi said...

॰अजित वड्नेरकर्……

[सबसे ऊपर की टिप्पणी मुझे अर्थहीन लगी। उसे हटा क्यों नहीं देते हैं ...]

अजित साहब, मै तो निर्बलो को भी नोबल दिलाने के पक्ष मे हूं… और आप है कि बोलने का अधिकार भी नही देना चाहते उन्हें!

वैसे भी सबसे नीचे एवम पीछे की चीज़े ही तो ऊपर आ बैठी है, आजकल!