Friday, February 13, 2009

Assurance!

 आश्वासन [दिलासा]
 

'बात झूठी है'; ये सच्चाई तो है,
बोल पाना 'यहीं' अच्छाई तो है।


क़द न बढ़ पाया; कि अवसर न मिले,
मुझसे लम्बी मैरी परछाई तो है।


दौरे मन्दी में थमी है रफ़्तार,
एक बढ़ती हुई महंगाई तो है।


कौन क्या है? ये कुछ पता न चला!
हम किसी चीज़ की परछाई तो है।


ख़ुद-फ़रेबों* की नही भीड़ तो क्या,
'मौसमे प्यार'* में तन्हाई तो है।


*ख़ुद फ़रेब = स्वय को धोका देने वाला, * मौसमे-प्यार = valentine day


-मन्सूर अली हाशमी[१३.०२.०९]

3 comments:

Vinay said...

बहुत अच्छा लिखा है!

Udan Tashtari said...

'बात झूठी है'; ये सच्चाई तो है,
बोल पाना 'यहीं' अच्छाई तो है।


-बहुत अच्छे.

Prakash Badal said...

क़द न बढ़ पाया; कि अवसर न मिले,
मुझसे लम्बी मैरी परछाई तो है।

दौरे मन्दी में थमी है रफ़्तार,
एक बढ़ती हुई महंगाई तो है।

खूबसूरत ग़ज़ल वाह
हाशमी साहब आपकी ग़ज़ल तो कहर ढा रही है हम पर। कमाल की शायरी।