Sunday, January 4, 2009

Ghazal-2

ग़ज़ल-2

रात रोती रही,सुबह गाती रही,
ज़िन्दगी मुख्तलिफ़ रंग पाती रही।


शब की तारीकियों में मेरें हाल पर,
आरज़ू की किरण मुस्कुराती रही।


सारी दुनिया को मैने भुलाया मगर,
इक तेरी याद थी जो कि आती रही।


मैं खिज़ा में घिरा देखता ही रहा,
और फ़सले बहार आ के जाती रही।

हाशमी मुश्किलों से जो घबरा गया,
हर खुशी उससे दामन बचाती रही।


म्। हाशमी

5 comments:

Anonymous said...

'हाशमी मुश्किलों से जो घबरा गया,
हर खुशी उससे दामन बचाती रही।'

- जिन्दगी का फलसफा बयाँ करती पंक्तियाँ !

Vinay said...

बहुत flow है ग़ज़ल में, मज़ा आ गया!

ghughutibasuti said...

बढ़िया ! कृपया कठिन शब्दों के अर्थ भी बता देंगे तो अच्छा रहेगा।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा है.

सारी दुनिया को मैने भुलाया मगर,
इक तेरी याद थी जो कि आती रही।

क्या बात है!!

विनोद श्रीवास्तव said...

हाशमी मुश्किलों से जो घबरा गया,
हर खुशी उससे दामन बचाती रही।

जिन्दगी को राह दिखाती हुई पंक्तियाँ. शुक्रिया हाशमी साहब.