Wednesday, December 31, 2008

ग़ज़ल-1

ग़ज़ल-1

जुस्तजूं* में उनकी हम जब कभी निकलते है,
साथ-साथ मन्ज़िल और रास्ते भी चल्ते है।


दौर में तरक्की के दिल लगाके अब मजनूँ,
रोज़ एक नई लैला आजकल बदलते है।


ता-हयात मन्ज़िल पर वो पहुंच नही सकते,
मुश्किलों के डर से जो रास्ते बदलते है।


ज़िन्दगी की राहों में हाशमी वह क्यों भटके,
जो जवाँ इरादों को साथ ले के चलते है।

*तलाश
-मन्सूर अली हाशमी।

7 comments:

"अर्श" said...

सबसे पहले तो आप और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.


ढेरो बधाई आपको...
अर्श

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज तो गज़ब ढा रहे हैं,
खूबसूरत कविताओं के बाद गजल भी?

Unknown said...

नया साल आए बन के उजाला
खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||

नूतन वर्ष मंगलमय हो |

नीरज गोस्वामी said...

ता-हयात मन्ज़िल पर वो पहुंच नही सकते,
मुश्किलों के डर से जो रास्ते बदलते है।
बहुत ही अच्छी रचना...बधाई
आप को भी नव वर्ष की शुभ कामनाएं...
नीरज

shelley said...

ज़िन्दगी की राहों में हाशमी वह क्यो भटके,
जो जवाँ इरादों को साथ ले के चलते है।
bahut khub.

समयचक्र said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
ढेरो बधाई आपको...

Vinay said...

बहुत बढ़िया, आपकी ग़ज़ल से रूबरू होते अच्छा लगा!