Thursday, October 23, 2008

To Be

होना.....

'होना'', हमारे लिये साधारण बात हो गयी है, इसी लिये हमें 'अपने' ही होने का अह्सास नही हो पाता।
सपने में ही कभी-कभी खुद के होने के अह्सास को चिकोटी काट कर कन्फ़र्म ज़रूर किया है, मगर आँख खुलते ही हम 'हम' कहाँ रह्ते है। होने को हम बहुत कुछ है, बेटा-बेटी, भाई-बहन, माँ-बाप, पति-पत्नी
दोस्त-दुशमन, आस्तिक-नास्तिक, गुरू-शिष्य, नेता-अनुयायी, इस या उस देश के वासी। और हाँ-  मनुष्य होने का आभास भी हमें कभी-कभी होता है- व्यथा की घड़ी में!  पशुत्व को तो हम अपने आवरण  तक ही सीमित रखते है कि पशुत्व में प्रकट होना हमे अपनी गरिमा के विपरित लगता है।
और भी बहुत कुछ 'होना' हमे अच्छा लगता है - जो हम नही है, मगर इस "होने" की भीड़ में;  सचमुच हम क्या है?…और क्या है ये सचमुच?……ये ''सचमुच होना" भी बड़ी साधारण बात है…'हम'
तो बड़ी असाधारण चीज़ है!

-मन्सूर अली हाश्मी

No comments: